Wednesday, November 11, 2009

पढ़े-लिखे

तुम कुछ लिखो, और हम वह पढें
गोया कुछ यूँ ही सही, हम पढ़े-लिखे तो कहलायें
- संजय माथुर जी द्वारा


लिखने का कुछ ये हुआ,
की
चिंगारी उठी कहीं और धुआं उठा
गीली लकडियों के बीच रह कर,
चुपचाप राख बन ने का मज़ा ही कुछ और है ....

-अंशु जोहरी