तुम कुछ लिखो, और हम वह पढें
गोया कुछ यूँ ही सही, हम पढ़े-लिखे तो कहलायें
- संजय माथुर जी द्वारा
लिखने का कुछ ये हुआ,
की न चिंगारी उठी कहीं और न धुआं उठा
गीली लकडियों के बीच रह कर,
चुपचाप राख बन ने का मज़ा ही कुछ और है ....
-अंशु जोहरी
Wednesday, November 11, 2009
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